बनारस
महबूब चाचा का कंधा और मोहर्रम का मेला -इसमें बहुत सारे हिंदू और मुस्लिम परिवार जाते हैं।
हनुमान जयंती के समय एक अहमद चाचा हनुमान बनते थे और दान इकट्ठा करते थे यह धान्वी मंदिर में जाकर दे देते थे !
झूलन प्रसाद का इफ्तार - कार्डिल बाजार में राजश्री स्वीट्स नाम का एक बहुत बड़ा दुकान है। आज से तीन जेनरेशन पहले झूलन प्रसाद जिन्होंने यह दुकान शुरू की थी वे रमजान के समय जुम्मे के दिन आपने यहाँ से छोले, पकौड़े, मिठाई बनाकर मस्जिद से लौट रहे मुसलमान भाइयों को बांटते थे। यह परंपरा आज भी चली आ रही है।
जंगमवाड़ी मठ- इस मठ की पूरी प्रॉपर्टी औरंगज़ेब ने दिया था और उसी समय से इसके खर्चे का भी वहन सरकार करती है !
लाट भैरव मस्जिद - यहाँ एक ही साथ पूजा भी होती है और नमाज़ भी पढ़ी जाती है, कहते हैं कि ये पुराने समय में बौद्ध धर्म का मंदिर था !
धरहरा मस्जिद – इसे राजा मान सिंह ने बनाया था !
गाजी मियां का मेला - बनारस के उसमानपुरा में यह शुरू होता है इसमें हिंदू और मुसलमान दोनों शामिल होते हैं।
बनारस में तीन चार बड़े दरगाह है जैसे बहादुर शहीद का मजार, चंदन शहीद का मजार, लाटशाही मजार आदि। इन में जब उर्स होता है तो लाखों की भीड़ होती है। इसमें अधिकतर नॉन मुस्लिम होते हैं और वे भी चादर चढ़ाते हैं मन्नत मांगते है।
बनारसी साड़ी बिनना - बनारसी साड़ी कई स्टेजो में बनती है। अलग अलग स्टेजों में हिंदू और मुस्लिम कारीगर जुड़े रहते हैं। बनारसी साड़ी बनाने और बेचने की प्रक्रिया में इंटर डिपेंडेंसी स्पष्ट दिखती है।
ऐसे और भी बहुत सारे साझी विरासत और गंगा जामुनी संस्कृति की उदाहरण हैं